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Wednesday, May 2, 2012

भारत को गुलाम बनाना है तो....

*** मैकाले नाम हम अक्सर सुनते है मगर ये कौन था ? इसके उद्देश्य और विचार क्या थे ? ***

यहाँ हम कुछ बिन्दुओं की विवेचना का प्रयास करते हैं....थोड़ा समय निकाल कर जरूर पढ़ें और इस विषय पर सोचें।

मैकाले: मैकाले का पूरा नाम था थोमस बैबिंगटन मैकाले....अगर ब्रिटेन के नजरियें से देखें...तो अंग्रेजों का ये एक अमूल्य रत्न था। एक उम्दा इतिहासकार, लेखक प्रबंधक, विचारक और देशभक्त.....इसलिए इसे लार्ड की उपाधि मिली थी और इसे लार्ड मैकाले कहा जाने लगा। अब इसके महिमामंडन को छोड़ मैं इसके एक ब्रिटिश संसद को दिए गए प्रारूप का वर्णन करना उचित समझूंगा जो इसने भारत पर कब्ज़ा बनाये रखने के लिए दिया था ...२ फ़रवरी १८३५ को ब्रिटेन की संसद में मैकाले की भारत के प्रति विचार और योजना मैकाले के शब्दों में:

"मैं भारत में काफी घुमा हूँ। दाएँ- बाएँ, इधर उधर मैंने यह देश छान मारा और मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी हो, जो चोर हो। इस देश में मैंने इतनी धन दौलत देखी है, इतने ऊँचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं की मैं नहीं समझता की हम कभी भी इस देश को जीत पाएँगे। जब तक इसकी रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते जो इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत है और इसलिए मैं ये प्रस्ताव रखता हूँ की हम इसकी पुराणी और पुरातन शिक्षा व्यवस्था, उसकी संस्कृति को बदल डालें, क्यूंकी अगर भारतीय सोचने लग गए की जो भी विदेशी और अंग्रेजी है वह अच्छा है और उनकी अपनी चीजों से बेहतर हैं, तो वे अपने आत्मगौरव, आत्म सम्मान और अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे और वैसे बन जाएंगे जैसा हम चाहते हैं। एक पूर्णरूप से गुलाम भारत।"

कई बंधू इस भाषण की पंक्तियों को कपोल कल्पित कल्पना मानते हैं.....अगर ये कपोल कल्पित पंक्तिया है, तो इन काल्पनिक पंक्तियों का कार्यान्वयन कैसे हुआ ?
मैकाले की गद्दार औलादें इस प्रश्न पर बगलें झाकती दिखती हैं और कार्यान्वयन कुछ इस तरह हुआ की आज भी मैकाले व्यवस्था की औलादें सेकुलर भेष में यत्र तत्र बिखरी पड़ी हैं। अरे भाई मैकाले ने क्या नया कह दिया भारत के लिए ?
भारत इतना संपन्न था की पहले सोने चांदी के सिक्के चलते थे कागज की नोट नहीं। धन दौलत की कमी होती तो इस्लामिक आतातायी श्वान और अंग्रेजी दलाल यहाँ क्यों आते... लाखों करोड़ रूपये के हीरे जवाहरात ब्रिटेन भेजे गए जिसके प्रमाण आज भी हैं मगर ये मैकाले का प्रबंधन ही है की आज भी हम लोग दुम हिलाते हैं 'अंग्रेजी और अंग्रेजी संस्कृति' के सामने। हिन्दुस्थान के बारे में बोलने वाला संस्कृति का ठेकेदार कहा जाता है और घृणा का पात्र होता है।

### इस सभ्य समाज का शिक्षा व्यवस्था में मैकाले प्रभाव- ये तो हम सभी मानते है की हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारे समाज की दिशा एवं दशा तय करती है। बात १८२५ के लगभग की है जब ईस्ट इंडिया कंपनी वितीय रूप से संक्रमण काल से गुजर रही थी और ये संकट उसे दिवालियेपन की कगार पर पहुंचा सकता था। कम्पनी का काम करने के लिए ब्रिटेन के स्नातक और कर्मचारी अब उसे महंगे पड़ने लगे थे। १८२८ में गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक भारत आया जिसने लागत घटने के उद्देश्य से अब प्रसाशन में भारतीय लोगों के प्रवेश के लिए चार्टर एक्ट में एक प्रावधान जुड़वाया की सरकारी नौकरी में धर्म जाती या मूल का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। यहाँ से मैकाले का भारत में आने का रास्ता खुला। अब अंग्रेजों के सामने चुनौती थी की कैसे भारतियों को उस भाषा में पारंगत करें जिससे की ये अंग्रेजों के पढ़े लिखे हिंदुस्थानी गुलाम की तरह कार्य कर सकें। इस कार्य को आगे बढाया जनरल कमेटी ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शन के अध्यक्ष 'थोमस बैबिंगटन मैकाले' ने ....मैकाले की सोच स्पष्ट थी, जो की उसने ब्रिटेन की संसद में बताया जैसा ऊपर वर्णन है। उसने पूरी तरह से भारतीय शिक्षा व्यवस्था को ख़त्म करने और अंग्रेजी (जिसे हम मैकाले शिक्षा व्यवस्था भी कहते है) शिक्षा व्यवस्था को लागू करने का प्रारूप तैयार किया। मैकाले के शब्दों में:

"हमें एक हिन्दुस्थानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है जो हम अंग्रेज शासकों एवं उन करोड़ों भारतीयों के बीच दुभाषिये का काम कर सके, जिन पर हम शासन करते हैं। हमें हिन्दुस्थानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है, जिनका रंग और रक्त भले ही भारतीय हों लेकिन वह अपनी अभिरूचि, विचार, नैतिकता और बौद्धिकता में अंग्रेज हों।"
और देखिये आज कितने ऐसे मैकाले व्यवस्था की नाजायज श्वान रुपी संताने हमें मिल जाएंगी... जिनकी मात्रभाषा अंग्रेजी है और धर्मपिता मैकाले। इस पद्दति को मैकाले ने सुन्दर प्रबंधन के साथ लागू किया। अब अंग्रेजी के गुलामों की संख्या बढने लगी और जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते थे वो अपने आप को हीन भावना से देखने लगे क्योंकि सरकारी नौकरियों के ठाठ उन्हें दिखते थे, अपने भाइयों के जिन्होंने अंग्रेजी की गुलामी स्वीकार कर ली और ऐसे गुलामों को ही सरकारी नौकरी की रेवड़ी बँटती थी। कालांतर में वे ही गुलाम अंग्रेजों की चापलूसी करते करते उन्नत होते गए और अंग्रेजी की गुलामी न स्वीकारने वालों को अपने ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया। विडम्बना ये हुई की आजादी मिलते मिलते एक बड़ा वर्ग इन गुलामों का बन गया जो की अब स्वतंत्रता संघर्ष भी कर रहा था। यहाँ भी मैकाले शिक्षा व्यवस्था चाल कामयाब हुई अंग्रेजों ने जब ये देखा की भारत में रहना असंभव है तो कुछ मैकाले और अंग्रेजी के गुलामों को सत्ता हस्तांतरण कर के ब्रिटेन चले गए ..मकसद पूरा हो चुका था.... अंग्रेज गए मगर उनकी नीतियों की गुलामी अब आने वाली पीढ़ियों को करनी थी और उसका कार्यान्वयन करने के लिए थे कुछ हिन्दुस्तानी भेष में बौद्धिक और वैचारिक रूप से अंग्रेज नेता और देश के रखवाले (नाम नहीं लूँगा क्यूंकी एडविना की आत्मा को कष्ट होगा) कालांतर में ये ही पद्धति विकसित करते रहे हमारे सत्ता के महानुभाव ..इस प्रक्रिया में हमारी भारतीय भाषाएँ गौड़ होती गयी और हिन्दुस्थान में हिंदी विरोध का स्वर उठने लगा। ब्रिटेन की बौद्धिक गुलामी के लिए आज का भारतीय समाज आन्दोलन करने लगा। फिर आया उपभोगतावाद का दौर और मिशिनरी स्कूलों का दौर चूँकि २०० साल हमने अंग्रेजी को विशेष और भारतीयता को गौण मानना शुरू कर दिया था तो अंग्रेजी का मतलब सभ्य होना, उन्नत होना माना जाने लगा। हमारी पीढियां मैकाले के प्रबंधन के अनुसार तैयार हो रही थी और हम भारत के शिशु मंदिरों को सांप्रदायिक कहने लगे क्यूंकी भारतीयता और वन्दे मातरम वहां सिखाया जाता था। जब से बहुराष्ट्रीय कंपनिया आयीं उन्होंने अंग्रेजो का इतिहास दोहराना शुरू किया और हम सभी सभ्य बनने में, उन्नत बनने में लगे रहे मैकाले की पद्धति के अनुसार ..अब आज वर्तमान में हमें नौकरी देने वाली हैं अंग्रेजी कंपनिया जैसे इस्ट इंडिया थी ..अब ये ही कंपनिया शिक्षा व्यवस्था भी निर्धारित करने लगी और फिर बात वही आयी कम लागत वाली, तो उसी तरह का अवैज्ञानिक व्यवस्था बनाओं जिससे कम लागत में हिन्दुस्थानियों के श्रम एवं बुद्धि का दोहन हो सके।
एक उदहारण देता हूँ: कुकुरमुत्ते की तरह हैं इंजीनियरिंग और प्रबंधन संस्थान, मगर शिक्षा पद्धति ऐसी है की १००० इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियरिंग स्नातकों में से शायद १० या १५ स्नातक ही रेडियो या किसी उपकरण की मरम्मत कर पायें, नयी शोध तो दूर की कौड़ी है.. अब ये स्नातक इन्ही अंग्रेजी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पास जातें है और जीवन भर की प्रतिभा ५ हजार रूपए प्रति महीने पर गिरवी रख गुलामों सा कार्य करते है ...फिर भी अंग्रेजी की ही गाथा सुनाते है.. अब जापान की बात करें १०वीं में पढने वाला छात्र भी प्रयोगात्मक ज्ञान रखता है ...किसी मैकाले का अनुसरण नहीं करता.. अगर कोई संस्थान अच्छा है जहाँ भारतीय प्रतिभाओं का समुचित विकास करने का परिवेश है तो उसके छात्रों को ये कंपनिया किसी भी कीमत पर नासा और इंग्लैंड में बुला लेती है और हम
मैकाले के गुलाम खुशिया मनाते हैं की हमारा फला अमेरिका में नौकरी करता है। इस प्रकार मैकाले की एक सोच ने हमारी आने वाली शिक्षा व्यवस्था को इस तरह पंगु बना दिया की न चाहते हुए भी हम उसकी गुलामी में फसते जा रहें है।

### समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव : अब समाज व्यवस्था की बात करें तो शिक्षा से समाज का निर्माण होता है। शिक्षा अंग्रेजी में हुए तो समाज खुद ही गुलामी करेगा, वर्तमान परिवेश में 'MY HINDI IS A LITTLE BIT WEAK' बोलना स्टेटस सिम्बल बन रहा है जैसा मैकाले चाहता था की हम अपनी संस्कृति को हीन समझे ...मैं अगर कहीं यात्रा में हिंदी बोल दूँ, मेरे साथ का सहयात्री सोचता है की ये पिछड़ा है ..लोग सोचते है त्रुटी हिंदी में हो जाए चलेगा मगर अंग्रेजी में नहीं होनी चाहिए ..और अब हिंगलिश भी आ गयी है बाज़ार में..क्या ऐसा नहीं लगता की इस व्यवस्था का हिंदुस्थानी 'धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का' होता जा रहा है। अंग्रेजी जीवन में पूर्ण रूप से नहीं सिख पाया क्यूंकी विदेशी भाषा है...और हिंदी वो सीखना नहीं चाहता क्यूंकी बेइज्जती होती है। हमें अपने बच्चे की पढाई अंग्रेजी विद्यालय में करानी है क्यूंकी दौड़ में पीछे रह जाएगा। माता पिता भी क्या करें बच्चे को क्रांति के लिए भेजेंगे क्या ?? क्यूकी आज अंग्रेजी न जानने वाला बेरोजगार है ..स्वरोजगार के संसाधन ये बहुराष्ट्रीय कंपनिया ख़त्म कर देंगी फिर गुलामी तो करनी ही होगी..तो क्या हम स्वीकार कर लें ये सब?? या हिंदी या भारतीय भाषा पढ़कर समाज में उपेक्षा के पात्र बने?? शायद इसका एक ही उत्तर है हमें वर्तमान परिवेश में हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित उच्च आदर्शों को स्थापित करना होगा।

हमें विवेकानंद का "स्व" और क्रांतिकारियों का देश दोनों को जोड़ कर स्वदेशी की कल्पना को मूर्त रूप देने का प्रयास करना होगा, चाहे भाषा हो या खान पान या रहन सहन पोशाक। अगर मैकाले की व्यवस्था को तोड़ने के लिए मैकाले की व्यवस्था में जाना पड़े तो जाएँ ....जैसे मैं 'अंग्रेजी गूगल' का इस्तेमाल करके हिंदी लिख रहा हूँ और इसे 'अँग्रेजी फ़ेसबुक' पर शेयर कर रहा हूँ .....क्यूंकी कीचड़ साफ करने के लिए हाथ गंदे करने होंगे। हर कोई छद्म सेकुलर बनकर सफ़ेद पोशाक पहन कर मैकाले के सुर में गायेगा तो आने वाली पीढियां हिन्दुस्थान को ही मैकाले का भारत बना देंगी। उन्हें किसी ईस्ट इंडिया की जरुरत ही नहीं पड़ेगी गुलाम बनने के लिए और शायद हमारे आदर्शो 'राम और कृष्ण' को एक कार्टून मनोरंजन का पात्र।
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Sunday, February 13, 2011

वेलेंटाइन पूजने नही थुकने लायक है।

हर साल 14 फरवरी को मनाये जाने वाले इस उत्सव के बारे में बताते हैं कि लगभग 1,500 साल पहले रोम में क्लाडियस दो नामक राजा का शासन था। उसे प्रेम से घृणा थी; पर वेलेंटाइन नामक एक धर्मगुरु ने प्रेमियों का विवाह कराने का काम जारी रखा। इस पर राजा ने उसे 14 फरवरी को फांसी दे दी। तब से ही यह ‘वेलेंटाइन दिवस’ मनाया जाने लगा।

लेकिन यह अधूरा और बाजारी सच है। वास्तविकता यह है कि ये वेलेंटाइन महाशय उस राजा की सेना में एक सैनिक थे। एक बार विदेशियों ने रोम पर हमला कर दिया। इस पर राजा ने युद्धकालीन नियमों के अनुसार सब सैनिकों की छुट्टियां रद्द कर दीं; पर वेलेंटाइन का मन युद्ध में नहीं था। वह प्रायः भाग कर अपनी प्रेमिका से मिलने चला जाता था। एक बार वह पकड़ा गया और देशद्रोह के आरोप में इसे 14 फरवरी को फांसी पर चढ़ा दिया गया। समय बदलते देर नहीं लगती। बाजार के अर्थशास्त्र ने इस युद्ध अपराधी को संत बना दिया।

वेलेंटाइन जैसे घटिया आदमी को पुजने से ज्यादा अच्छा उस पर थुकना चाहिये।
प्रेम के देवता वेलेंटाइन वुजदील देशद्रोही डरपोक कायर था वेलेंटाइन पुजने नही थुकने लायक है।
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Wednesday, December 8, 2010

गंगा आरती में काशी के घाट पर हिंदुओं का खून बहाने वालों को काशी माफ़ नहीं करेगी - डॉ तोगड़िया

काशी में गंगा आरती के समय प्राचीन शीतला माता घाट और दशाश्वमेध घाट के बीचो बीच धमाका यह सादी आतंकी घटना नहीं हो सकती I मंगलवार के ही दिन २००६ में काशी के संकटमोचन मंदिर में धमाका हुआ था ; गंगा आरती के समय मंगलवार को ही धमाका कर गंगा आरती बीच में रोकने का यह जेहादी षड्यंत्र भारत की श्रद्धा और भारत का धार्मिक ह्रदय काशी इन दोनों पर घिनौना हमला है! कपूर आरती चल रही थी, हजारो श्रद्धालु गंगा माँ की पूजा में जुटे थे , अनेको पंडित मंत्रोच्चार कर रहे थे , छोटी छोटी गरीब बच्चियाँ नावों में बैठे हजारों श्रद्धालुओं को पत्ते के कोण में रखे दीप गंगा माँ में बहाने के लिए बेच रही थी , युवा पंडित हाथों में वजनदार अनेकों बातियों की आरतियाँ लेकर गंगा माँ की प्रार्थना कर रहे थे , ऐसे में यह धमाका करना केवल विकृत मानसिकता का परिचय नहीं; यह तो भारत की अतिप्राचीन और विश्व की एकमेव जीवित नगरी ख़त्म करने के लिए जान बूझ कर किया हुआ जेहाद है ! उसी समय आस पास की मस्जिदों में अजान चल रही थी और गंगा माँ की आरती के सारे सूर, मन्त्र, ताल रोकना और हिंदुओं की पूजा में विघ्न लाना यह उसी प्रकार का घिनौना जेहाद है जिस के तहत कभी काशी विश्वनाथ मंदिर, बिंदुमाधव मंदिर और कई ऐसे मंदिर तोड़े गए, अयोध्या का राम मंदिर तोडा गया! मुंबई में ताज पर हमला करनेवाली यही जेहादी मानसिकता है! हिंदुओं को 'भगवा आतंकी' कहकर उन्हें बदनाम कर हिंदू साधू संतों को जेल भेजनेवाले, आश्रमों में, आश्रमों के मंदिरों में बूट चप्पल पहनकर, तलाशी लेने के बहाने हिंदुओं का अपमान कर रहे हैं, जो मुस्लिम मतों के लिए घुटने टेक रहे हैं, क्या अब वे यह हिम्मत दिखाएँगे की आस पास की मस्जिदों में तलाशी लें कि वहाँ अब क्या है? काशी के ८० घाटों पर हिंदुओं की परंपरागतगत पूजाएँ, विधि चलते हैं, वहाँ हिंदू धर्म ना माननेवाले फिरंगियों का, गंगा आरती में श्रद्धा से आने वाले हिंदुओं को धक्के मारकर मजाक उड़ानेवाले टोपीवालों का क्या काम? तुरंत काशी के सभी घाटों पर अहिंदुओं का प्रवेश वर्जित किया जाय, काशी विश्वनाथ मंदिर की गली में और काशी की सभी गलियों में जहाँ जहाँ करीबन ६०० से अधिक प्राचीन मंदिर, तीर्थ, कुण्ड, कूप हैं, वहाँ अहिंदुओं का प्रवेश वर्जित किया जाय, सुरक्षा के नाम पर हिंदुओं को सतानेवाले क्या कर रहे थे जब गंगा माँ का ह्रदय चीर दिया गया, भगवान् शंकर का डमरू जब उस धमाके से छिन्न विछिन्न होकर गंगा किनारे पड़ा रहा, कइयो श्रद्धालू घायल हो गए, गंगा माँ की पूजा के लिए पहुंचाया गया दूध भी क्या अब सुरक्षित नहीं है काशी में? विदेशी टूरिस्टों के भेस में कौन आते हैं, घाटों पर क्या करते हैं, कौनसे वीसा पर ठहरते हैं, यह तलाशी केवल इसीलिए नहीं की जाती क्यों की फिरंग पूजा और मुस्लिम तुष्टिकरण में देश की सुरक्षा ताक पर रखी जा रही है - जिसमें डेविड हेडली जैसे कई जेहादी घूस कर भारत को घायल कर रहे हैं ! अगर हाज हॉउस में, मस्जिदों में हिंदुओं को प्रवेश नहीं, तो हिंदुओं की देव नगरी काशी के घाटों पर, मंदिरों - तीर्थो, कुंडो कूपों पर अहिंदुओं को प्रवेश क्यों? यह प्रवेश तुरंत वर्जित किया जाय और काशी को 'विश्व संरक्षित धरोहर' घोषित कर काशी के लिए सुरक्षा दी जाय I काशी में जितने मदरसे हैं उन्हें तुरंत ताला लगाया जाय और आस पास की मस्जिदों में हिंदू संतों के समक्ष अभी तलाशी ली जाय I काशी के और संपूर्ण देश और विश्व के हिंदुओं को विश्व हिंदू परिषद् आवाहन करती है की इस घिनौने जेहादी हमले का विरोध लोकतांत्रिक पद्धति से करे और जब तक अहिंदुओं को काशी के घाटों, मंदिरों, तीर्थो, कुण्डों, कूपों पर प्रवेश वर्जित ना किया जाय तब तक यह लोकतांत्रिक आंदोलन जारी रखे| I

--डॉ प्रवीण तोगड़िया, आन्तरराष्ट्रीय महामंत्री, विश्व हिंदू परिषद्..
|| विश्व हिन्दू परिषद् ||
संकटमोचन आश्रम, (हनुमान मंदिर) से0-6,रामकृष्णपुरम, नई दिल्ली-22
दूर-011-26178992, 26103495 फैक्स-26195527,
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Saturday, December 4, 2010

ब्लैक मनी लौटाने को तैयार स्विटजरलैंड, पर भारत सरकार सुस्त

स्विस बैंकों में जमा भारतीयों का काला धन स्विट्जरलैंड लौटाना चाहता है। इसके लिए उस ने कानून भी बना लिया है, लेकिन भारत सरकार उस धन को वापस लेने के लिए आवश्यक औपचारिकताएं पूरी नहीं कर रही है। स्विट्जरलैंड में भारतीयों के 70 लाख करोड़ रुपये जमा हैं। संयुक्त राष्ट्र के 65वें विशेष सत्र में भाग लेकर लौटे बीजेपी के उपाध्यक्ष शांता कुमार ने कहा कि स्विस सरकार के स्थायी मिशन प्रमुख मैथायस बैचमैन ने स्विस बैंकों में जमा अवैध राशि के बारे में महासभा को जानकारी दी और आश्वस्त किया कि स्विस सरकार अपने बैंकों में जमा खातों की राशि संबंधित देशों को वापस करने के लिए पूर्ण सहयोग करेगी। स्विस सरकार अपने देश में जमा धन को चोरी की संपत्ति मानती है। इसी को ध्यान में रख कर स्विस सरकार ने स्विस संसद में मूल देशों को उनका पैसा और संपत्ति वापस करने के लिए कानून बना दिया है, लेकिन यह तभी संभव होगा जब संबंधित देश इस संबंध में अपनी इच्छा व्यक्त करें और आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करें।उनका कहना था कि सोल में हुए जी-20 कनवेंशन में तय किया गया था कि कोई देश काले धन के बारे में जानकारी गुप्त नहीं रखेगा। स्विट्जरलैंड ने मूल देशों को उनका काला धन लौटाने के 2003 के कनवेंशन की पुष्टि कर दी है, लेकिन भारत ने अब तक इसकी पुष्टि नहीं की है। इस कनवेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले 148 देशों में से 126 देशों ने इसे सत्यापित कर दिया है।

उन्होंने कहा कि संसद के मॉनसून सत्र में उन्होंने कनवेंशन को सत्यापित न करने का मामला उठाया था, लेकिन प्रधानमंत्री ने उसका कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने इस संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा तो उसका जवाब दिए जाने की बजाय राज्यमंत्री की ओर से उस पत्र की केवल पावती भेजी गई।

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Thursday, December 2, 2010

हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय


मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं जिसमे नचता भीषण संहार
रणचंडी की अतृप्त प्यास मै दुर्गा का उन्मत्त हास
मै यम की प्रलयंकर पुकार जलते मरघट का धुँवाधार
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मे आग लगा दूं मै
यदि धधक उठे जल थल अंबर जड चेतन तो कैसा विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै आज पुरुष निर्भयता का वरदान लिये आया भूपर
पय पीकर सब मरते आए मै अमर हुवा लो विष पीकर
अधरोंकी प्यास बुझाई है मैने पीकर वह आग प्रखर
हो जाती दुनिया भस्मसात जिसको पल भर मे ही छूकर
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन
मै नर नारायण नीलकण्ठ बन गया न इसमे कुछ संशय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै अखिल विश्व का गुरु महान देता विद्या का अमर दान
मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग मैने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान
मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार क्या कभी सामने सकठका सेहर
मेरा स्वर्णभ मे गेहर गेहेर सागर के जल मे चेहेर चेहेर
इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ मै
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै तेजःपुन्ज तम लीन जगत मे फैलाया मैने प्रकाश
जगती का रच करके विनाश कब चाहा है निज का विकास
शरणागत की रक्षा की है मैने अपना जीवन देकर
विश्वास नही यदि आता तो साक्षी है इतिहास अमर
यदि आज देहलि के खण्डहर सदियोंकी निद्रा से जगकर
गुंजार उठे उनके स्वर से हिन्दु की जय तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

दुनिया के वीराने पथ पर जब जब नर ने खाई ठोकर
दो आँसू शेष बचा पाया जब जब मानव सब कुछ खोकर
मै आया तभि द्रवित होकर मै आया ज्ञान दीप लेकर
भूला भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जगकर
पथ के आवर्तोंसे थककर जो बैठ गया आधे पथ पर
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढनिश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मैने छाती का लहु पिला पाले विदेश के सुजित लाल
मुझको मानव मे भेद नही मेरा अन्तःस्थल वर विशाल
जग से ठुकराए लोगोंको लो मेरे घर का खुला द्वार
अपना सब कुछ हूं लुटा चुका पर अक्षय है धनागार
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयोंका वह राज मुकुट
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरिट तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै वीरपुत्र मेरि जननी के जगती मे जौहर अपार
अकबर के पुत्रोंसे पूछो क्या याद उन्हे मीना बझार
क्या याद उन्हे चित्तोड दुर्ग मे जलनेवाली आग प्रखर
जब हाय सहस्त्रो माताए तिल तिल कर जल कर हो गई अमर
वह बुझनेवाली आग नही रग रग मे उसे समाए हूं
यदि कभि अचानक फूट पडे विप्लव लेकर तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

होकर स्वतन्त्र मैने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम
मैने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम
गोपाल राम के नामोंपर कब मैने अत्याचार किया
कब दुनिया को हिन्दु करने घर घर मे नरसंहार किया
कोई बतलाए काबुल मे जाकर कितनी मस्जिद तोडी
भूभाग नही शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥


मै एक बिन्दु परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु समाज
मेरा इसका संबन्ध अमर मै व्यक्ति और यह है समाज
इससे मैने पाया तन मन इससे मैने पाया जीवन
मेरा तो बस कर्तव्य यही कर दू सब कुछ इसके अर्पण
मै तो समाज की थाति हूं मै तो समाज का हूं सेवक
मै तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

रचना श्री अटल बिहारी जी

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Wednesday, December 1, 2010

ये हमारा हिन्दुस्तान है।

डाक्टर बीमार है
इंस्पेक्टर लाचार है।

घर में फोन है
मगर वह बेकार है।

अनपढ़ है मंत्री यहाँ
पढा़ लिखा सब बेकार है।

आदमी को पुछता नही
जानवरों से प्यार।

मुजरिमों का पता नही
बेकसूर गिरफ्तार है।

कुछ मत पुछो भाई
ये हमारा हिन्दुस्तान है।
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